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शैबाल गुप्ता का नहीं होना- प्रेमकुमार मणि

अर्थशास्त्री शैबाल गुप्ता का नहीं होना --- प्रेमकुमार मणि  यह स्वीकार करना कि शैबाल नहीं रहे , मेरे लिए कितना दुखद है , कैसे कहूँ . दशकों से हम मित्र रहे . इतनी यादें और संस्मरण हैं ,जिन्हें लिखना मुश्किल होगा . लम्बी बहसें ,साथ -साथ वर्षों घूमना .जाने  कितनी योजनाएं . सब कुछ याद करना सहज नहीं  होगा .  कुल मिला कर वह अर्थशास्त्री थे . इसी रूप में ही उन्हें देखा जाता था . लेकिन साहित्य ,संस्कृति ,राजनीति से लेकर पिछड़े बिहार के चतुर्दिक विकास की विभिन्न योजनाओं पर एक अहर्निश विमर्श का सिलसिला उनके साथ बना रहता था . जब भी कुछ लिखते या सोचते तुरत शेयर  करते . हिंदी क्षेत्र के नवजागरण के विभिन्न पहलुओं पर एक किताब लिखने की उनकी योजना कुछ वर्ष पूर्व बनी . एक या दो लेख भी इस विषय पर उन्होंने लिखे . हमने मिल -जुल कर कुछ किताबें इकट्ठी की . मेरे घर से कुछ किताबें ले गए . इस विषय पर उनसे खूब लम्बी बातें होती . वे तमाम बातें और वह किताब उनके दिमाग में ही रह गई . पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा था . ऐसा नहीं था कि वह दुनिया से रंज  थे . वह काम करना चा...