शहीद जगदेव प्रसाद की 100वीं जयंती-02फरवरी------बिहार में सकारात्मक राजनीति का जो बीज शहीद जगदेव प्रसाद ने बोया था वो फसल आज लहलहा रही है .2फरवरी 100 वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन- उदय कुमार मन्ना
सामाजिक क्रांति के अग्रदूत शहीद जगदेव प्रसाद की 100वीं जयंती 2 फरवरी 2021को कोटि कोटि नमन,विनम्र श्रद्धांजलि.
बिहार में सकारात्मक राजनीति का जो बीज शहीद जगदेव प्रसाद ने बोया था वो फसल आज लहलहा रही है .
सामाजिक क्रांति के अग्रदूतों की हत्या से वैचारिक क्रांतियां दृढ़ होती हैं -- आरजेएस फैमिली
नई दिल्ली। बिहार में ऐसे भी राजनीतिक दूरदर्शी हुए हैं जिन्होंने, हमेशा अंतिम आदमी और शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा आदि किसी को महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने समतामूलक समाज की स्थापना की।इसीलिए आज सकारात्मक राजनीतिज्ञों की प्रासंगिकता बनी हुई है। ऐसे ही बिहार में जन्में राजनीतिज्ञ थे - जगदेव प्रसाद । राम-जानकी संस्थान , आरजेएस के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने बताया कि 2 फरवरी उनकी जयंती पर आरजेएस फैमिली-पाॅजिटिव मीडिया की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि दी गई और उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा हुई ।
अक्टूबर 2019 में आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया की बिहार यात्रा के दौरान पटना स्थित जगदेव पथ नजदीक अशोकपुरी कालोनी में बाबू जगदेव प्रसाद को श्रद्धांजलि देकर आरजेएस की सकारात्मक बैठक की गई थी।
क्रन्तिकारी राजनेता शहीद जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को
बिहार में बोधगया के समीप कुर्था प्रखण्ड के कुरहारी ग्राम में हुआ था।इनके पिता प्रयाग नारायण पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली थीं।
जगदेव जी ने तमाम घरेलू झंझावतों के बीच उच्च शिक्षा ग्रहण किया। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया। वही उनका परिचय चन्द्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ। चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया। अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए। इसी बीच वे शोसलिस्ट पार्टी से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र 'जनता' का संपादन भी किया। एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी। 1955 में हैदराबाद जाकर अंग्रेजी साप्ताहिक 'सिटिजेन' तथा हिन्दी साप्ताहिक 'उदय' का संपादन आरभ किया।जगदेव बाबू ने अपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया। इसलिए संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया।
इन्हें 'बिहार लेनिन' के नाम से जाना जाता है जिन्होने एक अच्छे समाज को गढने में जी जान लगा दी। वह बिहार की कई सरकारों में मंत्री रहे।
बिहार क्रांतिकारियों की धरती रही है। यहां कई तरह के क्रांतिकारी बदलाव सामने आते हैं। 1970 आते-आते लोक गायक भिखारी ठाकुर समाज में सांस्कृतिक बदलाव ला चुके थे। तमाम तरह की कुरीतियां को मिटाने के लिए उन्होंने अपने नाटक, गीत- संगीत के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने का काम किया तो वही सामंतवाद के खिलाफ जगदेव प्रसाद और जगदीश मास्टर समेत तमाम लोगों ने बिगुल फूंका था। बिहार में बहुत बड़े बदलाव 1970 के आसपास देखा जा सकता है जमींदारी प्रथा के तहत जो गरीब वंचित तबका था उसे प्रताड़ित करने की जो परंपरा थी। उसके विरुद्ध बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा , जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव ,रामनरेश राम, विनोद मिश्रा,नागभूषण पटनायक समेत कई लोगों ने जबरदस्त जन- संघर्ष किया ।
उन्होंने कहा था, 'जो लड़ाई मैं शुरू कर रहा हूं, वह अगले सौ साल तक चलेगी। पहली पीढ़ी मारी जाएगी, दूसरी पीढ़ी जेल में रहेगी और तीसरी पीढ़ी राज करेगी। आज जब भी किसी वंचित तबके के लिए आवाज उठाने की बात होती है बिना शहीद जगदेव प्रसाद का नाम लिए बातों को पूरा नहीं किया जा सकता।
उनके द्वारा शुरू राजनीतिक जागरूकता के कारण ही बी.पी. मंडल, दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, भोला पासवान शास्त्री और बाद में लालू यादव और नीतीश कुमार आदि सत्ता के शीर्ष पर बैठ सके।
जगदेव प्रसाद ने जीवनभर शोषितों-पिछड़ों के लिए सौ में नब्बे की भागीदारी की बात की। वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे. सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे।
बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ( जे.पी.) के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ। मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं की गई तथा मौजूदा सरकार पर भी दबाव डाला गया ।लेकिन सत्ता- प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनी।
'5 सितम्बर 1974' को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में 'शोषित समाज' का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे।
गरीबों और वंचितों की आवाज उठाने के लिए कुर्था की शांतिपूर्ण सत्याग्रह सभा में भाषण देते समय पुलिस की गोली से 5 सितंबर 1974 को शहीद हो गए । ऐसी बर्बरतापूर्ण हत्या की सभी ने घोर निन्दा की।
आज शायद ही किसी को यकीन हो कि जिस महान नेता ने बिहार की राजनीति की दिशा ही बदल दी, उसके अपने परिवार ने जीवन में आर्थिक संकटों से घिरा रहा। कई तरह के दु:ख-तकलीफ का सामना किया था। बाबू जगदेव प्रसाद ने घर की जिम्मेवारियां अपने छोटे भाई वीरेंद्र प्रसाद के कंधों पर डाल दिया था और स्वयं राजनीति में लग गए।
जगदेव प्रसाद की राजनीति केवल सत्ता पाने की राजनीति नहीं थी। वे समाज में आमूलचूल बदलाव चाहते थे। वे जाति व्यवस्था के विरोधी थे और हिंदू धर्म में पाखंड का खुलकर विरोध करते थे।
बिहार में विभिन्न स्थानों का नाम बाबू जगदेव प्रसाद के नाम पर रखा गया है। पटना में बेली रोड जगदेव पथ समेत उनकी याद में कई प्रतिमाओं का भी अनावरण किया गया है।
उदय मन्ना
9811705015
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