आज विश्व रेडियो दिवस है- समाज के निर्माण में रेडियो ने महत्वपूर्ण निभाई है- थपलियाल. अभिव्यक्ति की आधुनिक बाजारवादी मीडिया ने अपनी परिभाषा गढ़ी है। हमें आवश्यकता है भारत के समस्त प्रसारक राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत को सर्वोपरि स्वीकार करना चाहिए। ----पार्थ सारथि थपलियाल,लेखक व चिंतक
आज विश्व रेडियो दिवस है- समाज के निर्माण में रेडियो ने महत्वपूर्ण निभाई है----
पार्थ सारथि थपलियाल,लेखक व चिंतक.(RJS फैमिली)
सूचना सम्प्रेषण के शुरुआती माध्यमों में डाक, तार और रेडियो रहे हैं। रेडियो एक तकनीक है, जो सिग्नल्स को प्राप्त कर मैग्नेटिक वेव में बदलकर प्रेषित्र के माध्यम से हवा में छोड देती है। यह सिग्नल रिसीवर पर हमें उस रूप में मिल जाती है जैसे मूल स्थान से भेजा गया था। यही रेडियो है। रेडियो समाज में सूचना, शिक्षा सभ्यता, नवजीवन, मनोरंजन, समाचार जैसी आवश्यताओं की पूर्ति करता आया है।
जैसे कहा जा रहा है कि रेडियो को इन्नोवेशन अपनाना चाहिए। रेडियो के इनोवेशन (नवोन्मेषी) होने का आशय उसकी प्रसारण सामग्री (content) से है। शहरों में नवोन्मेषी के रूप में एफ एम रेडियो कार्यरत हैं। वे क्या नया दे पाए हैं, समझ नही पाए। क्या प्रसारण ज्ञानी लोगों के लिए है या आम लोगों के लिए? क्या तीसरी दुनिया के लोग उस आधुनिकता को पकड़ पाए हैं, ताकि वे नवोन्मेषी कार्यक्रमों को रुचि से सुन पाएं। क्या रेडियो को फूहड़ मनोरंजन का माध्यम बनना चाहिए। एक ग्रामीण व्यक्ति को उसके लोक जीवन की बातें ज्यादा पसंद आती हैं तो आधुनिक शहरी श्रोताओं को पॉप, रॉक आदि पसंद आते हैं। समाज के निर्माण में रेडियो ने पूर्व में अहम भूमिका निभाई है। क्या हमारे अधिकतम प्रसारण राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप नही होने चाहिए? जनता की चाहत का कुछ बाजारू मीडिया वाले तर्क देते हैं? क्या यही नवोन्मेषी है? ये समझ मे नही आया ऐसा कहने वाले लोग कौन हैं? उनका विश्लेषण किसने किया? फूहड़ कॉमेडी शो की तरह क्या रेडियो को भी बन जाना चाहिए?
अभिव्यक्ति की आधुनिक बाजारवादी मीडिया ने अपनी परिभाषा गढ़ी है। हमें आवश्यकता है भारत के समस्त प्रसारक राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत को सर्वोपरि स्वीकार करना चाहिए। हमारे पारंपरिक प्रसारण को सुधारने का प्रयास हो नही पाया अन्यथा पारंपरिक रेडियो प्रसारण में जो रस पैदा किया जा सकता है वह आधुनिक तौर तरीकों जिनकी तथाकथित चर्चा होती है उनसे बेहतर हो सकती है। ध्यान रखने की बात यह है कि रेडियो प्रसारण में कानों की भूमिका सबसे अधिक होती है। कानों के लिए प्रसारण करना एक कठिन कला है।
आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया
9811705015
Comments
Post a Comment