सिक्किम का भूटिया समुदाय- वीरेंद्र परमार, #rjspositivemedia report
सिक्किम का भूटिया समुदाय - वीरेंद्र परमार
भूटिया तिब्बती मूल के हैं। इन्हें ‘भोटिया’ भी कहा जाता है I इनका मूल निवास स्थान ‘भोट’ (तिब्बत) होने के कारण इन्हें भूटिया कहा जाता है I तिब्बत का प्राचीन भारतीय नाम “भोट” था I इसलिए जो ‘भोट’ अथवा तिब्बत से आया उसे भूटिया कहा गया I 15 वीं शताब्दी के बाद ये लोग सिक्किम में आए । भूटिया मुख्य रूप से सिक्किम के उत्तरी भाग में बसे हुए हैं तथा यहाँ इनकी आबादी कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है I इन्हें लछेनपा, लोपो और लाचुंगपा भी कहा जाता है । भूटिया समुदाय ने अपनी परंपरा, संस्कृति, धर्म आदि के कारण सिक्किम में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनायी है I यह समुदाय अनेक गोत्रों में विभक्त है I येलोग माँसाहारी होते हैं I मांस के साथ चावल इनका नियमित भोजन है I वे फल और सब्जियाँ भी खाते हैं I खाना बनाने के लिए वेलोग पशुओं की चर्बी या मक्खन का उपयोग करते हैं I मोमो और थुकपा (नूडल्स) इनके अन्य खाद्य पदार्थ हैं । पिता परिवार का मुखिया होता है I परिवार में लड़कियों की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है I पिता की मृत्यु के बाद माता परिवार का उत्तरदायित्व संभालती है I इस समुदाय में जन्म संबंधी संस्कारों का विधिवत पालन किया जाता है I जन्म के बाद माँ - बच्चे का जल से स्नान कराया जाता है I उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रखा जाता है I जन्म के बाद नवजात बच्चे को थोड़ा मक्खन और शहद की कुछ बूँदें दी जाती हैं I दूसरे दिन से उसे मक्खन के साथ चावल का आटा दिया जाता है I जन्म के तीन दिनों के बाद लामा द्वारा माँ और बच्चे का शुद्धिकरण संस्कार कराया जाता है जिस अवसर पर परिवार के सभी सदस्य एवं सगे– संबंधी एकत्रित होते हैं I इस समय बच्चे का नामकरण भी किया जाता है I लामा द्वारा बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है I भूटिया सिक्किमी भाषा बोलते हैं जो तिब्बती भाषा की एक बोली है। लेपचा समुदाय की अपेक्षा भूटिया बड़ी संख्या में गाँवों में बसे हुए हैं। भूटिया के घर को ‘खिन’ कहा जाता है जो आम तौर पर आयताकार होता है। पुरुषों की पारंपरिक पोशाक को ‘बाखू’ के रूप में जाना जाता है जो पूरी आस्तीन के साथ ढीले कपड़े का एक प्रकार है। महिलाओं की पोशाक में सिल्क की ‘होंजू’ शामिल है जो पूरी आस्तीन की ब्लाउज और ढीला गाउन होता है। महिलाओं को शुद्ध सोने से बने भारी गहनों का बहुत शौक है।
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भूटिया परिवार में शादी परस्पर बातचीत के माध्यम से होती है। भूटिया समाज में शादी– विवाह एक खर्चीला और जटिल संस्कार है I विवाह की पहल वर पक्ष की ओर से की जाती है I सर्वप्रथम वर पक्ष की ओर से लड़के के चाचा या किसी भरोसेमंद व्यक्ति को लड़की के माता –पिता और लड़की की इच्छा जानने के लिए भेजा जाता है I गाँव के दो– तीन अन्य व्यक्ति भी उनके साथ होते हैं I इसे ‘दिचंग’ कहा जाता है I उपहार के रूप में वे अपने साथ मदिरा लेकर जाते हैं I उनके साथ ज्योतिषी भी जाते हैं जो लड़के – लड़की की कुंडली का मिलान करते हैं I वे विवाह की शुभ तिथि भी बताते हैं I कुछ औपचारिकताओं के बाद यह दल वापस आ जाता है I यदि तीन दिनों के भीतर कन्या पक्ष मदिरा लौटा देता है तो समझा जाता है कि लड़की के माता– पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं है, लेकिन यदि तीन दिनों के भीतर कन्या पक्ष द्वारा मदिरा नहीं लौटाई जाती है तो मान लिया जाता है कि उन्हें विवाह का प्रस्ताव मंजूर है I धार्मिक दृष्टि से भूटिया बौद्ध धर्मावलंबी हैं I भगवान बुद्ध और बोधिसत्व इनके प्रमुख देवता हैं I भूटिया समुदाय के लोग भगवान को सृष्टिकर्ता नहीं मानते बल्कि कर्म में विश्वास करते हैं I इनके कुछ गृह देवी– देवता, कुछ ग्राम्य देवी – देवता और कुछ कुल के देवी– देवता होते हैं I इनके अधिकांश देवी– देवता पर्वत, झील और वन हैं I भूटिया के धार्मिक जीवन में गोम्पा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है I गोम्पा के केंद्र में भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित होती है I गोम्पा में सभी धार्मिक क्रिया– कलाप लामा द्वारा संपन्न कराए जाते हैं I महिला लामा को ‘अन्ने’ कहा जाता है I अन्ने का प्रधान ‘चोटिम्बा’ होती हैं I लामा और अन्ने यदि चाहें तो शादी– विवाह भी कर सकते हैं I प्रायः प्रत्येक भूटिया परिवार अपना दूसरे पुत्र को धर्म के लिए समर्पित कर देता है I 8-12 वर्ष की उम्र में शारीरिक परीक्षण के बाद लड़के को बौद्ध मठों में प्रवेश दिया जाता है I लड़के की उत्पत्ति की भी जांच होती है और यदि उसका रक्त विशुद्ध तिब्बती पाया जाता है तो उसे बौद्ध विहार में प्रवेश दिया जाता है I
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