28 सितंबर भगत सिंह के जन्मदिवस पर विशेष लेख -"इंक़लाब" की परिभाषा को परिभाषित करने वाले महान क्रांतिकारी थे शहीद - ए - आज़म भगत सिंह : आलेख- राहुल इंक़लाब. #rjspositivemedia
28 सितंबर भगत सिंह के जन्मदिवस पर विशेष लेख
इंक़लाब की परिभाषा को परिभाषित करने वाले महान क्रांतिकारी थे शहीद - ए - आज़म भगत सिंह
: आलेख- राहुल इंक़लाब. #rjspositivemedia
अमर शहीद - ए - आज़म भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। उन्होने नौजवान भारत सभा व हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन जैसे क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना की और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। भगत सिंह को महज 23 वर्ष 5 महीने 26 दिन की आयु में ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, के जालंधर में है। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वर्ण सिंह जेल में थे।
उन्हें 1906 में लागू किये हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुल्म में जेल में डाल दिया गया था। उनकी माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और चाचा अजीत सिंह से अत्याधिक प्रभावित रहे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। स्कूल की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे। 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद 1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज लाहौर में बीए में प्रवेश लिया। यहीं उनकी सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, यशपाल इत्यादि क्रांतिकारियों सो दोस्ती हुई थी। कॉलेज में भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी बहसों और चर्चाओं में भाग लेने लगे। पढ़ाई के अलावा उन्हें नाटकों का भी शौक था। यही वो वक्त था जब भगत सिंह की दादी ने उनकी शादी की बात चलायी। लड़की उन्हें देखने भी आई थी। भले ही भगत सिंह की उम्र उस समय कम थी लेकिन अपने भावी जीवन की रूपरेखा उनके जहन में साफ थी। जबरदस्ती शादी कराए जाने की कोशिशों से नाराज भगत सिंह घर छोड़कर चले गए। जाते हुए उन्होंने अपने पता को पत्र लिखकर इसकी वजह भी बतायी। उन्हें विवाह बन्धन में बाँधने की तैयारियाँ होने लगीं तो वे लाहौर से भागकर कानपुर आ गये। और प्रताप प्रेस में विद्यार्थी जी के साथ जुड़ गए।1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया। इसी लाठी चार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। अब इनसे रहा न गया। एक गुप्त योजना के तहत इन्होंने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट को मारने की योजना बनाई । 17 दिसंबर 1928 को करीब सवा चार बजे, ए० एस० पी० सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सर में मारी जिससे वह पहले ही मर जाता। लेकिन तुरन्त बाद भगत सिंह ने भी 3-4 गोली दाग कर उसके मरने का पूरा इन्तज़ाम कर दिया। ये दोनों जैसे ही भाग रहे थे कि एक सिपाही चनन सिंह ने इनका पीछा करना शुरू कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने उसे सावधान किया - "आगे बढ़े तो गोली मार दूँगा।" नहीं मानने पर आज़ाद ने उसे गोली मार दी और वो वहीं पर मर गया। इस तरह इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया। और तीनों कोलकाता निकल लिए। 1929 में 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था. बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ़्तारी दी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला जिसमें दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और एक को लाहौर सेंट्रल जेल व दूसरे को मियांवाली जेल भेज दिया गया वही सांडर्स हत्या का मामला चला जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई।
23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।
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