उर्दू पत्रकारिता पर आजादी की अमृत गाथा आरजेएस वेबिनार में वक्ताओं ने कहा भाषा को धर्म से जोड़ना गलत. क्रांतिकारी शहीद अशफाक उल्ला खान,मौलवी मोहम्मद बाकर, सैयद अहमद खां, रामकृष्ण खत्री,लक्ष्मी सहगल,मातंगिनी हजारा और रानी चेन्नम्मा को आरजेएस फैमिली ने दी श्रद्धांजलि. आरजेएस मीडिया फैमिली भारत के प्रथम शहीद पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाकर की वतन परस्ती की राह अपनाएगी।



क्रांतिकारी अशफाक उल्ला, सैयद अहमद खां,मौलवी मोहम्मद बाकर, रामकृष्ण खत्री,लक्ष्मी सहगल,मातंगिनी हजारा और रानी चेन्नम्मा को आरजेएस फैमिली ने दी श्रद्धांजलि.उर्दू पत्रकारिता पर आजादी की अमृत गाथा आरजेएस वेबिनार में वक्ताओं ने कहा भाषा को धर्म से जोड़ना गलत.
 आरजेएस मीडिया फैमिली भारत के प्रथम शहीद पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाकर की वतन परस्ती की राह अपनाएगी।
https://youtu.be/aDzqhXmlY4w

नई दिल्ली। भारत सरकार के अमृत महोत्सव को राम जानकी संस्थान,नई दिल्ली के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि विकास शिल्पा केंद्र , गुंटेगेरी,पश्चिम बंगाल के सचिव सोमेन कोले ने स्वैच्छिक समर्थन देते हुए आजादी की अमृत गाथा के श्रृंखलाबद्ध पचहत्तर कार्यक्रमों की कड़ी में रविवार को 19 वां राष्ट्रीय बेबीनार आयोजित किया। 
जस्टिस फाॅर द डिप्राइव्ड के सहयोग से उर्दू पत्रकारिता का आजादी ‌में योगदान विषय पर आयोजित वर्चुअल बैठक में क्रांतिकारी अशफाक उल्ला, सैयद अहमद खां,मौलवी मोहम्मद बाकर, रामकृष्ण खत्री,लक्ष्मी सहगल,मातंगिनी हजारा और
 रानी चेन्नम्मा को अतिथिगण प्रो.के जी सुरेश,प्रो.अख्तरुल वासे, अरविंद कुमार सिंह,मासूम मुरादाबादी आदि के सानिध्य में ‌आरजेएस फैमिली ने श्रद्धांजलि दी. इस अवसर पर शहीद अशफाक उल्ला खान के पौत्र अशफाक उल्ला खान और  क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के पुत्र उदय खत्री की ऑडियो रिकॉर्डिंग से संदेश सुनाया गया।
आरजेएस सकारात्मक भारत सूचना केंद्र जमशेदपुर से प्रभारी डा.पुष्कर बाला और केंद्र से जुड़ी निशा झा और पटना केंद्र  से जुड़ी सुमन कुमारी पाॅजिटिव स्पीकर्स रहे। वहीं अन्य पाॅजिटिव स्पीकर्स रहे इशहाक खान और कुसुम प्रसाद।
अतिथियों का स्वागत  ऐक्टिव मीडिया के संपादक सिराज अब्बासी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन आरजेएस ऑब्जर्वर दीप माथुर ने किया।
लेखिका और पत्रकार रिंकल शर्मा ने वेबिनार का सफल संचालन करते हुए ये शेर कहा 
"हिंदी और उर्दू में सिर्फ़ फर्क है इतना, वो ख़्वाब देखते हैं और हम सपना." 
 आरजेएस-टीजेएपीएस केबीएसके आजादी की अमृत गाथा राष्ट्रीय वेबिनार -19 के मुख्य अतिथि प्रो के जी सुरेश -माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति
 ने कहा कि कोई भी ज़ुबाँ किसी भी एक मज़हब की ज़ुबाँ नहीं हो सकती है। हम सभी को सभी ज़ुबानों को एक साथ लेकर चलने की ज़रूरत है। इसके साथ ही उन्होंने उर्दू पत्रकारिता में आज की युवा पीढ़ी की उदासीनता को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि भाषा के विकास के लिए आज पीढ़ी को उर्दू पत्रकारिता में आगे आना चाहिये। और उर्दू को किसी मज़हब से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।
प्रोफेसर केजी सुरेश ने कहा कि भारतीय जनसंचार संस्थान , दिल्ली में  महानिदेशक रहते हुए हमने उर्दू पत्रकारिता के सर्टिफिकेट प्रोग्राम को अपग्रेड करके फुल फ्लेज्ड पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम इन उर्दू जर्नलिज्म बनाया l इसकी फीस बहुत कम रखी गई ताकि हर तबका पढ़ाई कर सके।
पद्मश्री से सम्मानित और खुसरो फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा की दूरियों को कम करने में आरजेएस का श्रृंखलाबद्ध अमृत गाथा राष्ट्रीय वेबीनार बहुत बड़ा योगदान दे रहा है ।
अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा कि भाषाओं का कोई धर्म नहीं होता, हर धर्म को भाषाओं की जरूरत है।
 उर्दू भाषा हिंदुस्तान में जन्मी पली-बढ़ी और आजादी के आंदोलन में योगदान दिया। इसमें मौलवी मोहम्मद बाकर के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें धर्म को अपने श्रद्धा तक रखना चाहिए और राष्ट्रीयता से समझौता नहीं करना चाहिए। हमें धर्म का सच्चा अनुयाई बनना चाहिए ना की भाषाओं को धर्म का ठप्पा लगाना चाहिए।
 यह गलत है । जिन लोगों ने आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी जेलों में जीवन गुजारा और तकलीफें काटी। उनके सपनों को पूरा करने के लिए और देश को आगे बढ़ाने के लिए हमें आजादी की सुरक्षा के लिए करनी है और इसी से हम लोग क्रांतिकारियों के खून के बलिदान का हक अदा कर सकते हैं। आरजेएस राष्ट्रीय वेबीनार के मुख्य वक्ता लेखक पत्रकार और नेता विपक्ष राज्यसभा के मीडिया सलाहकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा की आजादी में उर्दू पत्रकारिता का अहम योगदान रहा है ।उन्होंने भारत की आज़ादी के इतिहास से रूबरू कराया।स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाकर को सम्मान देने की जरूरत है।  उन्होंने बताया कि किस तरह उस समय पत्रकारिता करने वालों को ब्रिटिश सरकार द्वारा यातनाएं दी जाती थी। पत्रकारों को  फाँसी  दी जाती थी । उन्होंने कहा कि  कलम की ताकत सबसे बड़ी होती है। अख़बार की जबाँ न हिन्दी है न उर्दू है,  अख़बार की  जुबान हिंदुस्तानी है। आज़ादी के इतिहास पर बात करते हुए उन्होंने न सिर्फ़ पत्रकार और पत्रकारिता के योगदान को बताया बल्कि लोगों तक अखबार पहुंचाने वाले हॉकर्स की भूमिका का भी ज़िक्र किया।
पत्रकारिता में अपने आप को समर्पित रखने की  बात महात्मा गांधी और  शहीद बाकर दोनों ने बताई है।
 आरजेएस राष्ट्रीय वेबिनार के अतिथि वक्ता ऑल इंडिया उर्दू एडिटर्स कांफ्रेंस के सचिव मासूम मुरादाबादी ने ओपनिंग रिमार्क्स में कहा कि पहली जंग आजादी की लड़ाई उर्दू भाषा में लड़ी गयी और इस भाषा के पत्रकारों ने अपनी जानें दे कर वतन की रक्षा की.  इस में सभी धर्मों के लोग थे.  ये कहना की उर्दू किसी विशेष धर्म के लोगों की भाषा है सब से बड़ा अन्याय है.  उर्दू का पहला अखबार जाम ए जहां नुमा 1822 में कोलकाता से पंडित हरि हर  दत ने निकाला था और इसके सम्पादक पंडित सदा सुख थे.  1857 की क्रांति में सबसे पहले जिस पत्रकार को अंग्रेजों ने मौत की सजा दी वे दिल्ली उर्दू अखबार के सम्पादक मौलवी मोहम्मद  बाकर थे।
 उन्होंने 1857 से लेकर 1947 तक आज़ादी की लड़ाई में  पत्रकारों और उर्दू अखबारों के संपादकों की शहादत का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि करीब 9 उर्दू संपादक ऐसे थे जिन्हें उनकी निर्भीक पत्रकारिता की वजह से उस समय सज़ा-ए-कालापानी दी गयी।
वेबिनार के समापन पर संयोजक उदय कुमार मन्ना ने मुनि इंटरनेशनल स्कूल,दिल्ली के सहयोग से ई-सेफ्टी और ऑनलाइन एजुकेशन पर अगले रविवार 31 अक्टूबर को आरजेएस राष्ट्रीय वेबिनार की घोषणा की । इसमें मुख्य अतिथि आईएएस टॉपर शुभम कुमार और मुख्य वक्ता सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और साईबर लाॅ.नेट के अध्यक्ष डा.पवन दुग्गल , अतिथि वक्ता पूर्व आईटी अधिकारी भारत सरकार निखिलेश मिश्रा और ख्यातिप्राप्त शिक्षाविद् डा.अशोक कुमार ठाकुर रहेंगे।

उदय मन्ना
राष्ट्रीय संयोजक ,
आरजेएस (राम-जानकी संस्थान)
नई दिल्ली
प्रथम सकारात्मक भारत आंदोलन, 9811705015
rjspositivemovement@gmail.com

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