श्री राणीसती दादी की कथा और सम्पूर्ण जीवन परिचय :-आरती चालीसा दादी जी के वंश में हुई कुल 13 सतियों का भी पुर्ण जानकारी।कृपया अधिकाधिक शेयर करें और परिवार और दादी भक्तों को भी बताएं ।चाँद झुनझुनवाला द्वारा रचित संकलित आप सभी दादी भक्तों के लिए । #rjspositivemedia ....Mob.8368626368

श्री राणीसती दादी की कथा और सम्पूर्ण जीवन परिचय :-
आरती चालीसा दादी जी के वंश में हुई कुल 13 सतियों का भी पुर्ण जानकारी।
कृपया अधिकाधिक शेयर करें और परिवार और दादी भक्तों को भी बताएं ।
चाँद झुनझुनवाला द्वारा रचित संकलित आप सभी दादी भक्तों के लिए ।   #rjspositivemedia
 ....Mob.8368626368
750 साल पुराना है रानी सती का यह मंदिर :- श्री रानी सती का महान मंदिर राजस्थान के झुंझुनू जिले में है . यह मंदिर 750 साल पुराना है और बहूत ही भव्य और नयनाभिराम है .इस मंदिर की कलाक्रति अनुपम चित्रकारी इस मंदिर में 4 चाँद लगा देती है | भादो अमावस्या के दिन एक विशेष उत्सव इस मंदिर में आयोजित किया जाता है . इस दिन मंदिर दादी रानी सती के भक्तो से पूरा भर जाता है . दुनिया के हर कोने से दादी भक्त अपने शीश को दादी के चरणों में झुकाने और उनकी महिमा में दूर दूर से आते है . प्रधान मंड में श्री राणी सती दादी जी की बिराजमान है .

 यह मंदिर मकराना के मार्बल और रंगीन पेंटिंग से बना हुआ है जो बहूत ही भव्य लगता है | मारवाड़ी लोगो की मान्यता है की रानी सती माँ दुर्गा का अवतार है . मारवाड़ी परिवार और रानी सती भक्त अपने अपने घरो में रानी सती मैया की पूजा करते है | इस मंदिर की बहूत मान्यता है की यहा पे बहूत जल्दी मुरादे पूरी होती है . बुरे समय में अपने बच्चो को मैया ने बहूत बार संभाला है | इस मंदिर में 13 सति मंदिर है जिसमे 12 छोटे और 1 बड़ा है . पास में हरि बगीची में भगवन शिव की प्रतिभा बहूत सुन्दर लगती है | 

श्री राणीसती जी की जीवन गाथा ( राणीसती दादी – जीवन परिचय ) :- माँ नारायणी का जन्म वैश्य जाती के अग्रवाल वंश में हरियाणे में धनकुबेर सेठ श्री घुरसामल जी गोयल के सं १३३८ वि कार्तिक शुक्ला ८ शुभ मंगलवार रात के १२ बजे पश्चात हरियाणे की प्राचीन राजधानी ‘महम’ नगर के ‘ढ़ोकवा’ के  उपनगर डोका हरिया ग्राम में हुआ था । सेठ घुरसमाल महाराजा अग्रसेन जी के सुपुत्र श्री गोंदालाल के वंशज थे। गोयल गोत्र के थे। सेठ जी ‘महम’ के तो नगर सेठ थे हे लेकिन उस समय उनकी मानता व सम्मान दिल्ली के बादशाहों तक थी। उन दिनों एक तरह से दिल्ली का शासन मह्म्वालों के इशारों पर चलता था| दिल्ली हिसार (ग्रांड ट्रंक) सड़क पर सैंकड़ो महल, मन्दिर, मकबरे, मस्जिदों, भवनों के खंडहर दोनों तरफ आज भी है, जिससे सिद्ध होता है की उस ज़माने में महम समृध्दशाली व विशाल नगर रहा होगा । इनका नाम ‘नारायणी’ बाई रखा गया था। ये बचपन में धार्मिक व सतियों वाले खेल सखियों के साथ खेला करती थी। कथा आदि में विशेष रूचि लेती थी। बड़ी होने पर सेठजी ने इन्हे धार्मिक शिक्षा , शस्त्र शिक्षा, घुड़सवारी आदि की भी शिक्षा दिलाई थी। इन्होंने इनमें प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। उस समय हरियाणा में ही नहीं उत्तर भारत में भी इनके मुकाबले कोई निशानेबाज बालिका एवं पुरुष भी नहीं था | बचपन में ही ये अपने चमत्कार दिखलाने लगी थी। एक डाकिन (पुराने ज़माने में बच्चे खाने वाली एक औरात) महम नगर में आया करती थी। इनकी सुन्दरता की ख्याति सुनकर डाकिन एक दिन आई। इन पर हमला करने की तो हिम्मत नही पड़ी, लेकिन डाकिन इनकी सहेली को उठाकर लेके जाने लगी| उन्हें आता देख डाकिन बेहोश होकर अंधी हो गई । डाकिन के पास पहुंचकर नारायणी जी ने तुंरत सहेली को छुड़ाया और उसे जीवित किया। डाकिन इनका ये चमत्कार देखकर डर गई। उसने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और प्रतिज्ञा की कि आगे से मैं बच्चे नही खाया करूंगी। इन्होंने उसे क्षमा किया और उसकी आँखे भी ठीक कर दी। इस तरह दादी ने अपने बहुत सारे चमत्कार बचपन में दिखाए । 

विवाह :- इनका जन्म अग्रवाल कुल शिरोमणि हिसार राज्य के मुख्य दिवान स्वनाम धन्य सेठ श्री जाली राम जी बंसल के सुपुत्र श्री तनधनदास जी के साथ मंगसिर शुक्ला ८ सं. १३५१ मंगलवार को महम नगर में बहुत ही धूमधाम से समारोह पूर्वक हुआ था। इनके पिता श्री ने जो दहेज़ दिया था उसमे हाथी, घोडे, ऊंट, घोड़े और सैकड़ोँ छवड़े सामान से भरे हुए दिये थे। सबसे विशेष वस्तु एक ‘श्यामकर्ण’ घोड़ी थी। उस काल में उत्तर भारत में यही केवल एक ‘श्यामकर्ण’ घोड़ी थी ।

श्री तनधन दास जी का जीवन परिचय :- इनका जन्म वैश्य जाती में महाराज अग्रसैन जी के सुपुत्र विशाल्देव जी (वीरभान जी) के वंश में हुआ था। इनके वंशज ‘बंसल’ गोत्री कहाये । उसी बंसल गोत्र में सेठजी श्री जालानदास जी के श्री तनधनदास जी ने जन्म लिया था। इनके एक छोटे भाई का नाम कमलराम था । उस समय हिसार का नवाबी राज्य आजकल के हरियाणा प्रदेश से बड़ा था । उसी नवाबी राज्य हिसार के श्री जालानदासजी मुख्य दिवान थे । इनकी न्यायप्रियता की धाक दूर-दूर तक राज्यों में थी। ये चतुर व कर्मठ शासक थे । विवाह के पश्चात श्री तनधनदास जी सायकाल अपनी ससुराल वाली घोड़ी पर सैर करने हिसार में जाया करते थे। नवाब के पुत्र शेह्जादे को दोस्तों ने भड़काया कि जैसी घोड़ी दिवान के लड़की के पास है ऐसी तेरे राज्य में नही है। शहजादा तो घोड़ी देखकर पहले से हे जला भुना बैठा था। दोस्तों कि बातो ने आग में घी का काम किया। शहजादा तुंरत नवाब साहब के पास गया और घोड़ी लेने की हठ की। नवाब ने दिवान साहब को बुलाकर घोड़ी मांगी। दिवानजी ने कहा – मालिक ये घोड़ी मेरी नही है। लड़के को ससुराल से मिली है। वह घोड़ी नहीं देंगे। आप क्षमा करें। समय व संस्कार की बात है। नवाब ने घोड़ी छीनने का प्रयत्न किया। संघर्ष में बहुत से सैनिक सेनापति सहित मारे गये । भाग दौड़ पल्टन गई | यह देखकर नवाब ज्यादा निराश हो गया और दोस्तों की बातों में आकर दिवानजी की हवेली से घोड़ी लाने आधी रात को गया। नया आदमी देखकर घोड़ी हिनहिनाने लगी। शाम हो गई। श्री तनधन जी सांग (भाला) लेकर उस ओर चले । सांग के एक वार में हे नवाबजादा मारा गया। दिवानजी ने मिलकर विचार किया और तुरन्त हिसार छोड़कर झुंझनू – नवाब के पास जाने का निर्णय किया क्यूंकि हिसार और झुंझनू के नवाबो की आपस में लड़ाई व शत्रुता थी। रातों रात हिसार से परिवार सहित दिवानजी चल पड़े। उधर सुबह होने पर नवाब ने शहजादे को महलों में नहीं देखा। चरों ओर तलाश की गई। अंत में दिवानजी की हवेली से शहजादे की लाश लायी गई। नवाब के महल में कोहराम मच गया। नवाब ने सेना को तुरन्त दिवान को पकड़ लाने का आदेश दिया। सेना चारों और चल पड़ी, उत्तर की और जाने वाली सेना ने लुहारू के पास दिवानजी को जातें हुए देखा। लेकिन तब तक दिवान सपरिवार झुंझनू राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। हिसारी सेना की ताकत झुंझनू सेना से टक्कर लेने की नहीं थी, सेना निराश होकर हिसार लौट आई। नवाब सब सुनकर सिर पीटकर रह गया । श्री जालान्दास जी के सपरिवार जी के झुंझनू पहुँचने पर नवाब साहब ने शाही मुरतब व लवाजमें के साथ स्वंय नगर सीमा पर स्वागत सम्मान किया और दिवान (मुख्यमंत्री) का पद दिया। उन्होंने हिसार से भी उच्चकोटि का कार्यकर जनता व नवाब के विश्वास पात्र बनकर शानदार ढंग से रहने लगे। राज्यभर में दिवानसाहब की न्यायप्रियता व शासन की धूम मच गई । 

मुकलावा ( गौना ) :- ‘महम’ नगर चूँकि हिसार राज्य में था। इसलिए शहजादे काण्ड की शान्ति के बाद सेठ घुर्सामल जी के मुकलावा करने के लिए झुंझनू दिवान साहब के पास ब्राह्मण द्बारा निमंत्रण भेजा। साथ ही सारे समाचार और मंगसिर क्रष्ण १ मंगलवार का लग्न मुहूर्त भेज दिया। झुंझनू से लौटकर ब्राह्मण ने मुहूर्त पर कुंवर तनधनदास जी के आने का सुसमाचार नगर सेठ को बताया । लग्न-मुहूर्त से ४ दिन पहले श्री तनधनदास जी मित्रों व साथियों सहित ढोकवा (महम) सांयकाल पहुंच गये। नगर सेठ की और से स्वागत सत्कार का शानदार व सराहनीय प्रबंध किया गया। सेठ जी श्री तनधनदास जी से प्रार्थना की कि आप महम में ही निवास कीजिये । जो इच्छा हो व्यापार या कार्य कीजिये। लेकिन गर्वीले श्री तनधन जी ने ससुराल में रहना स्वीकार नहीं किया। मंगसिर कृष्णा १ सं. १३५२ मंगलवार को प्रात: शुभ बेला में नगर सेठ श्री घुरसामल जी ने मुकलावा देकर बाई नारायणी जी को कुंवर श्री तनधनदास जी के साथ झुंझनू के लिए विदा किया। साथ में बहुत धन तथा सामान आदि भी दिया । श्री तनधन जी के रवाना होते समय अपशकुन होने लगे, सामने छिंक हुई। यह देखकर सबको बहुत ही फिकर व विचार हुआ। पर वीर तनधन जी ने श्री गणेश मनाकर अपनी पत्नी नारायणी देवी के साथ झुंझनू प्रस्थान किया । मार्ग में दोपहर भोजनादि के बाद आगे चले। नवाब हिसार के राज्य कि सीमा को एक और बचाते हुए दोपहर बाद भिवानी नगर से ४-५ मील दूर ‘देवसर’ की पड़ी के पास पहुंचे ही थे कि पहाड़ी क्षेत्र के खडड खेलों से निकल निकलकर हिसार नवाब की फौजों ने इन पर भयंकर हमला कर दिया । श्री तनधन जी के दल ने संख्या में उनसे कम होतें हुये भी वीरता से डटकर हिसारी फौजों से युद्ध किया। हिसारी फौजें श्री तनधन जी के दल की मार न सह सकने के कारण अस्त-व्यस्त होकर भाग चली । नवाबी फौजों के भाग जाने पर सिपहसालार ने छुप कर पीछे से आकर धोखे से दुधारे से श्री तंधन जी पर वार किया । लेकिन मरते मरते भी वीर तंधन ने सिपहसालार का सिर अपनी सिरोही (तलवार) से एक ही वार में काट दिया । 

सती-स्थल देवसर ( भिवानी ) :- लड़ाई के समय हल्ला बहुत हुआ था। नवाबी फौजे तितर-बितर होने लगी थी। इससे पहाड़ी के नीचे क्षेत्र में वातावरण शान्त सा हो गया। पर्देदार रथ में बैंठी नवेली बहु नारायणी जी ने ये देखने के लिए जरा पर्दा हटाया कि क्या बात हुई। पर्दा हटाते ही जो कुछ देखा, वह सब देखकर सन्न रह गई। रथ के सामने उनके प्राणप्रिय तनधन जी का शव पड़ा हुआ था । थोड़े समय बाद हे वीर तनधन जी की मृत्यु समाचार जानकर नवाबी फौजें वापस उसी और घेरा डालने आगे लगी। वीरांगना नारायणी जी ने सब देखा और तुंरत निर्णय कर क्रोध में भरकर अपने पति की तलवार हाथ में लेकर उनकी घोडी पर सवार हो गई और रणचणडी सी फौजों पर टूट पड़ी |श्री नारायणी जी ने कुछ ही समय में अधिकांश नवाबी फौज को मार डाला । श्री नारायणी जी ने कहा की कोई है । ये सुनते ही घोडी का राणा (सेवक) घायल अवस्था में गिरता पड़ता आया । पुछा क्या आज्ञा है। नारायणी ने कहा – मैं इसी पहाड़ी के नीचे सती होउंगी । जल्दी चिता बनाओं, संध्या होने वाली है । राणाजी ने झुंझनू ले चलो – सेवक ने कहा। नारायणी ने कहा – मेरा झुंझनू तो सामने है, वहा जाकर क्या करुँगी। जल्दी चिता बना दो, सूर्य छिपने वाला है। ये सुनकर राणा ने आस पास से तुंरत लकड़िया चुनकर इकट्ठी कर चिता बनाई। सती की आज्ञा से राणा ने, तब वहाँ चिता बना दी थी । श्री नारायणी जी पति का शव लेकर चिता पर बैठ गई। उसी क्षण सती तेज से अग्नि प्रगट हुई । चिता धायं धायं जलने लगी । चिता धायं धायं कर जलने लगी। इसी बीच मारकाट भागदौड़ देखकर आपास के गावों के नर नारियों के झुंड इकट्ठे हो गए। चिता पर नारियल, चावल, घी आदि सामान चड़ने लगे। जय जयकार होने लगी । थोड़े समय बाद आप चिता में से देवी रूप में प्रगत हुई और मधुर वाणी से बोली – हे राणाजी, मेरी चिता ३ दिन में ठंडी हो जाएगी। भास्मी इकट्ठी करके मेरी चुनरी में बाँध हमारी घोड़ी पर रख देना। तुम भी बैठ जाना। घोड़ी ख़ुद ही जहाँ ठहर जाए उसी स्थान पर मै अपने प्यारे पति के साथ निवास करती हुई जन-जन का भला व कल्याण करती रहूंगी | तीन दिन बाद चिता ठंडी होने पर राणा ने सती नारायणी के आदेशानुसार भस्मी इकट्ठी करके उनकी चुनड़ी में बाँध कर घोड़ी पर रख दी और ख़ुद भी बैठ गये। घोड़ी उत्तर दिशा की और झुंझनू के माढ पर चल पड़ी। घोड़ी चलती चलती झुंझनू के बीड़ (गोचर भूमि) को पार करके झुंझनू नगर के उत्तर दिशा में आकर रुक गई। राणा ने अनेक प्रयत्न किये। पर घोड़ी वहीं डट गई । 

सती भस्मी झुंझनू आगमन :- राणा ने घोड़ी को वहीं एक जाटी वृक्ष से बांधकर दीवानजी श्रीजालानदास जी के घर जाकर मार्ग के सब समाचार सुनाये। सुनते ही सेठजी का परिवार रो पड़ा, घर में कोहराम मच गया। बहुत समझाने पर सब घोड़ी के पास श्मशान में आये वहां चोतरा बनाकर भस्मी को स्थापित कर पूजन किया गया । कुछ लोगों में सती होने पर शंका हुई। उसी समय चेंतरे पर चढे हुए पूजा के सामान से आग की चिनागारिया निकलने लगी। चेंतरे ने चिता का रूप ले लिये । ये देखकर जन-जन जयकार करता हुआ श्मसान की और उमड़ पड़ा। चौतरें पर १३ दिन १३ रात अग्नि चिता सी जलती रही। अंत में बहुत प्रार्थना करने तथा क्षमा मांगने पर जलते हुये चौतरें पर से मधुर वाणी सुनाई दी की ‘चौतरें’ पर जल चढ़ाओँ । ये सुनते ही जन समूह पात्रों में जल ले लेकर चढ़ाने लगा और चिता शांत हो जाने पर पूजा-दान शुरू हो गया।ये प्रत्यक्ष चमत्कार देखकर जनता जय जय करने लगी । 

दूसरा चमत्कार भस्मी का भूतल प्रवेश :- जब पूजा जात-धोक सती की चालू थी। उसी समय जन-जन के सामने तभी हुआ विस्फोट यकायक । अर्थात उस समय चौतरें पर यकायक विस्फोट (धमाका) हुआ। जन साधारण ने आश्चर्य से देखा कि चौतरें वाली भूमि फट गई और भस्मी, घोडी और जो-जो सामान को राणा साथ लाये थे, सब के सब उसी भूमि में समा गये। उसी समय तीसरा चमत्कार हुआ कि सब सामान के भूमि में समा जाने के बाद चौतरा फिर जैसा था, वैसा हो गया । अनुमानत: आज जो विशाल मन्दिर (मंढ) बना हुआ है, ये उसी चौतरे पर चौथा मन्दिर है । 

स्वर्गारोहण :- देवसर पड़ी के निचे मंगसिर क्रष्ण ९ सं. १३५२ मंगलवार को जब माँ नारायणी जी सती हो गई तो उसी समय दशों दिगपालों व् अन्य देवलोकों में जयकार होने लगी और कहने लगे कलियुग में सतियाँ आज भी है । 

१३ सतियों के मंढ :- श्री रानीसती जी माँ नारायणी सं. १३५२वि. में ‘देवसर‘ में सती हुई थी । इनके ही परिवार में सं १७६२वि. तक १२ सतियाँ और हुई । इन १२ सतियों के छोटे छोटे सुंदर कलात्मक मंढ शवेत संगमरमर के एक पंक्ति में बने हुए थे। जिनकी मान्यता व् पूजा बराबर होती आ रही है । श्री जालानदास जी के पुत्र कि पुत्रवधू सं. १३५२ में सती हुई। इसी कुल कि १२ सतियाँ झुंझनू में और हुई। (१) माँ नारायणी (२) जीवणी सती (३) पूर्णा सती (४) पिरागी सती (५) जमना सती (६) टीली सती (७) बानी सती (८) मैनावती सती (९) मनोहरी सती (१०) महादेई सती (११) उर्मिला सती (१२) गुजरी सती (१३) सीता सती
🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱
चालीसा: श्री राणी सती दादी जी
🌸🌸🌸🌸🌸
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश, बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै, भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई, सुख सम्पति संसार॥

॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी।
नमो नमो संकट कू हरनी, मनवांछित पूरण सब करनी ॥2॥

नमो नमो जय जय जगदंबा, भक्तन काज न होय विलंबा।
नमो नमो जय जय जगतारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी ॥४॥

दिव्य रूप सिर चूनर सोहे, जगमगात कुन्डल मन मोहे।
मांग सिंदूर सुकाजर टीकी, गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥६॥

गल वैजंती माल विराजे, सोलहूं साज बदन पे साजे।
धन्य भाग गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को ॥८॥

तनधनदास पति वर पाये, आनंद मंगल होत सवाये।
जालीराम पुत्र वधु होके, वंश पवित्र किया कुल दोके॥

पति देव रण मॉय जुझारे, सति रूप हो शत्रु संहारे।
पति संग ले सद् गती पाई , सुर मन हर्ष सुमन बरसाई॥

धन्य भाग उस राणा जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का।
विक्रम तेरह सौ बावन कूं, मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं॥

नगर झून्झूनू प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता।
दूर देश के यात्री आवै, धुप दिप नैवैध्य चढावे॥

उछाङ उछाङते है आनंद से, पूजा तन मन धन श्रीफल से।
जात जङूला रात जगावे, बांसल गोत्री सभी मनावे॥

पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते।
नाना भाँति भाँति पकवाना, विप्र जनो को न्यूत जिमाना॥

श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते, सेवक मनवांछित फल पाते।
जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सतीजी की बलिहारी॥

द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत सिंगार साज अति साजे।
रत्न सिंघासन झलके नीको, पलपल छिनछिन ध्यान सती को॥

भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला।
भक्त सूजन की सकल भीङ है, दरशन के हित नही छीङ है॥

अटल भुवन मे ज्योति तिहारी, तेज पूंज जग मग उजियारी।
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है, देश देश मे भवन भौति है॥

नाना विधी से पूजा करते, निश दिन ध्यान तिहारो धरते।
कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी, करूणामयी झुन्झुनू वासिनी॥

प्रथम सती नारायणी नामा, द्वादश और हुई इस धामा।
तिहूं लोक मे कीरति छाई, राणी सतीजी की फिरी दुहाई॥

सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घंटा ध्वनि टंकारे।
राग छत्तीसों बाजा बाजे, तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥

त्राहि त्राहि मै शरण आपकी, पुरी मन की आस दास की।
मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो मैया कारज मेरो॥

पूजा जप तप नेम न जानू, निर्मल महिमा नित्य बखानू।
भक्तन की आपत्ति हर लिनी, पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी॥

पढे चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माहि विचारा।
टिबरिया ली शरण तिहारी, क्षमा करो सब चूक हमारी॥

॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण, जन जीवन आधार।
बिगङी बात सुधारियो, सब अपराध बिसार॥
🌺🌺🌺🌺🌺
॥ मात श्री राणी सतीजी की जय ॥
🙏🙏🙏🔱🔱🔱🔱🔱🔱🌺🌸🌷🌼🌻🥀🍁🔱🔱🔱🙏🙏🙏
जय श्री रानी सती मैया, जय श्री रानी सती |
अपने भक्त जनों की दूर करने विपत्ति || जय

अवनि अनवर ज्योति अखंडित मंडित चहुँ कुकुमा |
दुर्जन दलन खंग की विद्युत् सम प्रतिभा || जय

मरकत मणि मन्दिर अति मंजुल शोभा लाख न परे |
ललित ध्वजा चहुँ और कंचन कलस धरे || जय

घंटा घनन घडावल बाजे शंख मृदंग धुरे |
किंनर गायन करते वेद ध्वनि उचरे || जय

सप्त मातृका करें आरती सुरगण ध्यान धरे |
विविध प्रकार के व्यंजन श्री भेंट धरे || जय
संकट विकट विडानि नाशनि हो कुमती |
सेवक जन हृदि पटले मृदुल करन सुमती || जय

अमल कमल दल लोचनि मोचनि त्रय तापा |
“शांति ” सुखी मैया तेरी शरण गही माता || जय

या मैया जी की आरती जो कोई नर गावे, 
मैया जो सुंदर गावे, 
मैया जो नित से गावे, 
जाके पाप उतर जावे, 
जाके घर लक्ष्मी आवे, 
जाके उर-आनंद छावे |
सदन सिद्धि नवनिधि फल मन वांछित पावें || जय
हमारा मुख्य उद्देश्य श्री राणी सती मैया रानी जी का भारत वर्ष मे प्रचार-प्रसार करना है -माँ राणीसती दादी जी सदा आप सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करें और आप सब पर माँ राणीसती अपनी ममता लुटाती रहें...✍🏻
🌸🌺🍁🥀🌻🌼🌷
जय माता दी 
🙏🙏🙏🙏🙏

ll *ॐ श्री राणीसत्यै नमः* ll
ठण्डी ठण्डी छांव चूनड़ की, खीर पूआ का थाल..
चाल झुंझनू का मेला में, ओ दादी का लाल..
चाहे सारा साल झुंझनू, कितनो ही तू जा..  ज
लेकिन भादी मावस पर जा, पूरो धर्म निभा..
मावस को मेलो तो जैसे, हो घर की दिवाली.. 
खूब मनावै बैठ भवन में, माई झुंझनूवाली..
तू क्यूं फिर वंछित है अब तक, सब तेरो परिवार.. 
"भादो को यो मेलो, अपनो बडो त्यौंहार..
!! *ॐ नमो नारायणी* !!
🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱
🕉️ राणीसत्यै नमो नमः 
🌿☘☘🌿☘☘🌿☘☘🌿
🔱🔱🔱🔱🔱🔱 👁 ❗👁 🔱🔱🔱
*।।मेरा सर्वस्व - मेरी मैय्या ।।*
🌼🌼🌼🌼🌼
*मेरी पहचान - मेरी दादीजी*
🌷🌷🌷🌷🌷
*🌹🔱🔱🔱🔱🔱🔱🌹जय श्री दादीजी की 🌹🔱🔱🔱🌹*
जय हो झुंझुनूं धाम की जय 
🌻🥀🍁🙏🔱🔱🔱🌺🌸🌷🌼
जय हो झुंझुनूं की महारानी मोटी सेठानी 
राणीसती माताजी की जय 
🌻🥀🍁🌺🌸🌷🌼
आप और आपके परिवार को मेरे और मेरे परिवार की और से भादी अमावस और सती पूजन के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाइयाँ 
🙏🙏🙏🙏🙏
जय श्री सती मैया रानी जी की जय 
🍁🌺🌸🌷🌼🥀🌻
झुंझुनूं धाम से माता राणीसती के भव्य, मनमोहक, अलोकिक दर्शन 
जय दादी की 
🌺🌸🌷🌼🥀🌻🍁

Comments

Popular posts from this blog

पूरी तरह से कृषि कार्यो में प्रयोग होने वाले कृषि उपकरण,खाद,बीज,दवाई आदि पर जीएसटी से मुक्त करने का वित्त मंत्री ने किसानों को आश्वासन दिया- धर्मेन्द्र मलिक

आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विश्व भारती योग संस्थान के सहयोग से आरजेएस पीबीएच वेबिनार आयोजित.

वार्षिकोत्सव में झूम के थिरके नन्हे बच्चे।