साहित्य अकादेमी का साहित्योत्सव2023 संपन्न.... करुणा का वैश्विकरण होना चाहिए - कैलाश सत्यार्थी

साहित्य अकादेमी का साहित्योत्सव2023 16 मार्च को संपन्न.
करुणा का वैश्विकरण होना चाहिए - कैलाश सत्यार्थी
बच्चों के लिए कहानी-कविता, चित्रकला प्रतियोगिताओं का हुआ आयोजन
विदेशों में भारतीय साहित्य, साहित्य और महिला सशक्तिकरण, मातृभाषा का महत्त्व और संस्कृत भाषा और संस्कृति विषयक आयोजित हुई परिचर्चाएँ
नई दिल्ली। 16 मार्च 2023; साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित छह दिवसीय साहित्योत्सव का अंतिम दिन बच्चों से जुड़ी गतिविधियों पर केंद्रित रहा। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम व्यक्ति और कृति शीर्षक से था, जिसे समाज सुधारक एवं नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ आयोजित किया गया।
 अपना वक्तव्य देते हुए कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि साहित्य अकादेमी साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल का दर्जा रखती है। मैं कई अन्य तीर्थों की यात्रा कर चुका हूँ और आज साहित्य अकादेमी जैसे तीर्थस्थल में भी मेरी उपस्थिति दर्ज हो गई है। यह उपस्थिति मेरे लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि मैं कोई बड़ा साहित्यकार नहीं हूँ लेकिन साहित्य के महत्त्व और इसके प्रभाव को अवश्य समझता हूँ। उन्होंने सोशल मीडिया के बढ़ते बुरे प्रभावों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि हमें इस पर अंकुश लगाना होगा। समाज में व्याप्त असुरक्षा, निराशा और संकुचित होते संबंधों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इससे छुटकारा तब ही मिल सकता है तब भारत भूमि से ‘करुणा का वैश्विकरण’ का संदेश पूरी दुनिया को दिया जाएगा। वक्तव्य में उन्होंने अपने बचपन के दिनों में रामचरित मानस का प्रभाव, पिता और बड़े भाई के साथ कठिन मेहनत, हिंदी के प्रति अपना प्यार और भारत की नैतिक शक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारी वैदिक परंपरा ही समाज में सद्भाव लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
बच्चों के लिए प्रतियोगिताएँ दो वर्गो जूनियर एवं सीनियर में आयोजित की गई थी, जिसमें 300 बच्चों ने भाग लिया। पुरस्कृत बच्चों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार वितरित किए गए। समारोह में, बाल लेखकों - अनंतिनी मिश्रा, सिया गुप्ता, राम श्रीवास्तव और साइना सरीन ने साथी युवा छात्र मित्रों के साथ रचनात्मक लेखन के अपने अनुभव साझा किए।
अंतिम दिन चार परिचर्चाएँ विदेशों में भारतीय साहित्य, साहित्य और महिला सशक्तिकरण, मातृभाषा का महत्त्व और संस्कृत भाषा और संस्कृति विषय पर आयोजित की गई जिनके विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता राधावल्लभ त्रिपाठी, प्रतिभा राय, दीपा अग्रवाल, ममंग दई, अनामिका, राणी सदाशिव मूर्ति, प्रदीप कुमार पंडा, अरविंदो उज़िर ने की। राष्ट्रीय संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः बल्देव भाई शर्मा, उदयनारायण सिंह, सितांशु यशश्चंद्र एवं अरुण कमल ने की।
ज्ञात हो कि साहित्य अकादेमी  इतिहास  के इस सबसे बड़े साहित्योत्सव में 400 से ज्यादा रचनाकारों ने 40 से अधिक विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया।
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