क्या है #सेंगोल ? सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘#सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से सेंगोल को स्वीकार किया था।

क्या है #सेंगोल
सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘#सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से सेंगोल को स्वीकार किया था।
ये है "सेंगोल"
महान चोल राजाओं के समय सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक, जिसके शीर्ष पर विराजमान हैं महाराज "नन्दी "... (नन्दी अर्थात् बैल को शास्त्रों में धर्म का स्वरूप माना गया है)।सेंगोल को भगवान शिव के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है और अब यही सेंगोल भारत की नई संसद में स्थापित होने जा रहा है।

सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक सेंगोल (#राजदंड) को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बग़ल में रखा जाएगा. 

14 अगस्त, 1947 को तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा सरकार को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' को पंडित नेहरु को भेंट किया गया था. सोचिए, इसे हाथों में लेकर पंडित नेहरु कैसा महसूस कर रहे होंगे. 

अंग्रेजों के बनाये गए संसद भवन से आत्मनिर्भर भारत के अपने संसद भवन में प्रवेश यकीनन हर भारतीय को गर्व से भर देने वाला होगा.

ये संसद आज भी है और सालों बाद जब हममें से कोई नहीं होगा तो उस आने वाली पीढ़ी के भारतीयों को भी ये हमेशा गर्व करने का मौक़ा देगा कि ये “आज़ाद भारत में बना हुआ #अमृतकाल का हमारा संसद भवन है”

#विस्तार_से
देश के नए संसद भवन का काम पूरा हो चुका है। आगामी 28 मई को इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना है। इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने आज संसद से जुड़ी तमाम जानकारी साझा की। प्रेस कांफ्रेस के दौरान उन्होंने कहा कि इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा के पुनर्जीवित होने का एलान करते हुए कहा कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा। इस दौरान गृहमंत्री ने सेंगोल के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही उन्होंने सात मिनट सत्रह सेकेंड की एक शॉर्ट फिल्म भी जारी की। इस शॉर्ट फिल्म में सेंगोल के इतिहास और उसकी महत्ता को विस्तार से बताया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के दौरान इसका विचार कहां से आया और फिर इसका निर्णाण कैसे किया गया। जानते हैं सेंगोल के इतिहास के बारे में... 

सेंगोल के इतिहास के बारे में बताया गया है कि जब भारत आजाद हो रहा था तो अंतिम वाययराय जनरल लॉर्ड माउंटबेटन के सामने एक बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ कि भारतीयों को स्वराज कैसे सौंपा जाए। भारत जैसे देश के संबंध में हाथ मिलाकर सत्ता का हस्तातंतरण करना उचित नही था। ऐसे में उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से अपनी यह दुविधा बताई। उन्होंने पंडिच नेहरू से पूछा कि इस गौरवशाली क्षण के लिए कौन सी रस्म निभाई जाए। पंडित नेहरू ने इसके बारे में राजाजी के नाम से जाने जाने वाले सी राजगोपालचारी से इस बारे में चर्चा की। राजाजी तमिलनाडु से आते थे। पंडित नेहरू को उनकी विद्वता और भारतीय परंपराओं और सभ्यताओं पर उनके अध्ययन पर पूरा भरोसा था। इसके बाद राजगोपालचारी ने कई ग्रंथों का अध्ययन किया। काफी अध्ययन के बाद उन्हें इसका उपाय भारत के गौरवशाली इतिहास में मिला।

अध्ययन और शोध के दौरान राजाजी ने तमिलनाडु के चोल साम्राज्य में सत्ता के हस्तांतरण के लिए अपनाई जाने वाली रस्म को इस अवसर के लिए तय किया। चोल साम्राज्य भारत के प्राचीनतम और लंबे समय तक चलने वाले साम्राज्य में एक था. इस साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा में सत्ता का हस्तांतरण एक सेंगोल सौंपकर किया जाता था जो कि नीति परायणता का उदाहरण माना जाता था। सेंगोल को सौंपते वक्त भगवान शिव का आह्नान किया जाता था, क्योंकि चोला साम्राज्य शिव का भक्त था। सी राजगोपालाचारी ने इसी परंपरा का सुझाव नेहरू जी को दिया जिसे पंडित नेहरू ने माना। 

इसके बाद राजाजी ने बिना संमय गंवाए प्रमुख धार्मिक मठ तिरुवा वर्दुरई आदिनम से संपर्क किया। थिरुववदुथुराई आदिनम 500 वर्ष से अधिक पुराना है और अभी भी इसने पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों के साथ काम करना जारी रखा है। आदिनम के तत्कालीन महंत ने तुरंत 'सेंगोल' (पांच फीट लंबाई) की तैयारी के लिए चेन्नई में जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया।

तब जिस सेंगोल का निर्माण किया गया उसके शीर्ष पर  नंदी विराजमान थे, जिन्हें शक्ति, सत्य और न्याय का प्रतीक माना जाता है। सेंगोल बनाने वाले वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने बताया कि इसे चांदी से बनाया गया था। जिसके उपर सोने की परत थी। उन्होंने कहा कि अधीनम के सानिध्य में इस निर्माण से जुड़कर हम बेहद उत्साहित थे। स्वतंत्रता हम सभी के लिए गौरवशाली क्षण था, लेकिन सेंगोल का निर्णाण से जुड़कर हमारे लिए उस क्षण का गौरव बढ़ गया था। 

14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी कराने के लिए तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था। इनमें अधीनम के उप महायाजक श्री लै श्री कुमार स्वामीतमीरान, आश्रम के ओडुवर और  नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई (गायक) थे। वे अपने साथ सेंगोल लेकर आए थे। 

14 अगस्त 1947 की रात को श्री लै श्री कुमार स्वामीतमीरान ने रीतिअनुसार सेंगोल को अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटेन को सौंपा, इसके बाद उसे वापस लिया गया और फिर उस पर पवित्र जल छिड़का गया। इसके बाद सेंगोल को एक शोभायात्रा में पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास ले जाया गया। वहां आश्रम के ओडुवार ने तमिल संत थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित श्लोंकों का पाठ किया। इस बीच, नेहरु जी को पीतांबर वस्त्र पहनाए गए और फिर उन्हें सेंगोल सौंपा गया। एक हजार साल पुरानी परंपरा का पालन करते हुए जो मंत्र तमिल में कहा गया उसका अर्थ था - ये हमारा आदेश है कि ईश्वर के अनुयायी राजा स्वर्ग के समान शासन करेंगे।

इस प्रकार एक हजार साल पुरानी परंपरा का पालन करते हुए उत्तर और दक्षिण के असाधारण एकीकरण द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोते हुए सत्ता का हस्त्तांतरण किया गया। इस मौके पर नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद और कई अन्य नेताओं की उपस्थिति में सेंगोल को स्वीकार किया।
मनीष कुमार सोलंकी के फेसबुक वॉल से

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