कृषि मंत्रालय द्वारा आयोजित बजट से पूर्व परामर्श में भारतीय किसान यूनियन ने सुझाव दिए
श्री शिवराज सिंह चौहान , केन्द्रीय कृषि मंत्री भारत सरकार
कृषि भवन नई दिल्ली l
विषय-कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा बजट से पूर्व हितधारकों से परामर्श में कृषि से सम्बंधित सुझाव।
महोदय,
भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बजट से पूर्व किसानों के साथ किए जा रहे परामर्श के लिए आपका आभार व्यक्त करते हुए कहना चाहती है कि देश में आज भी निजी क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार कृषि क्षेत्र से है लेकिन यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार है।
कृषि क्षेत्र को बजट से अधिक प्रभावित नीतियां और फैसले करते है। कृषि को लेकर एक समग्र पंच वर्षीय किसान नीति जी जरूरत है जिसका उद्देश्य केवल उत्पादन आधारित न होकर कृषि एवं किसान कल्याण पर आधारित हो।
कृषि हमेशा एक बड़े विचार का हिस्सा रही है आजादी के बाद यह बड़ा विचार जमींदारी उन्मूलन प्रथा,1950में सामुदायिक विकास की पहल,1960-70 के दशक में हरित क्रांति,1980 के दशक में दुग्ध क्रांति आई,लेकिन यह प्रक्रिया 1990 के दशक के बाद बंद हो गई। तीन दशक के बाद किसी भी बजट में इसे चालू करने की झलक नहीं दिखाई नहीं पड़ी है।
देश के बजट मौजूदा कृषि संकट के कारण को पहचानने में नाकाम रहे है।
भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक द्वारा देशभर के किसानों की समस्याओं पर आज कृषि मंत्रालय में आयोजित बजट से पूर्व चर्चा में निम्नलिखित सुझाव है ।
1. फसलों का उचित एवं निश्चित लाभकारीन समर्थन मूल्य- न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत सी2 का डेढ़ गुना तय किया जाए। क्योकि ए2+एफएल और सी2 के बीच भी व्यापक अंतर है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मौजूदा प्रणाली कृषि उपज की उत्पादन लागत को कवर करने में विफल है, इसलिए इसमें सुधर किया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना वर्तमान बाजार सूचकांक की समीक्षा के आधार पर की जाए जिसमें भूमि का किराया,कृषक मजदूरी,परिवार की मजदूरी,कृषि निवेश,उत्पादन की उचित लागत, कटाई के बाद के कार्यों में खर्च व् नुकसान जैसे सफाई में खर्च , ग्रेडिंग में खर्च, पैकेजिंग में खर्च, परिवहन में खर्च , सरकार द्वारा खुले बाजार में अपने कृषि उत्पाद बेचने से भाव गिरने का जोखिम, प्राकृतिक आपदा जोखिम, निर्यात प्रतिबन्ध के जोखिम आदि घटकों के आधार पर की जाए। सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य निश्चित रूप से दिया जाय
2. पंचवर्षीय कृषि नीति- देश में दीर्घकालिक कृषि नीति की आवश्यकता है। जिसमें प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप कृषि पद्धति को अपनाने,कृषि नीति में डेटा आधारित बदलाव के निर्णय,उत्पादन वृद्धि के साथ संसाधनों का संरक्षण,पर्यावरणीय प्रभाव, जलवायु परिवर्तन,पानी की कमी,मिट्टी का श्ररन,किसानों की आजीविका, समय पर खाद,बीज,दवाई,बिजली, मजदूर आदि का न मिलना, जलवायु परिवर्तन से आ रही चुनौतियां,फसलों की उत्पादन लागत में वृद्धि, भण्डारण, मंडियों का निर्माण आदि को शामिल कर एक कृषि नीति तय की जाय
3.सस्ता एवं लंबी अवधि का कृषि ऋण- कृषि क्षेत्र को घाटे से उभारने के लिए दीर्घकालीन ऋण की जरूरत है। आज किसान एक लोन को चुकाने के लिए दूसरा लोन ले रहा है। कृषि ऋण,कृषि उपकरण ऋण समय पर भुगतान करने वाले किसानों को 1% ब्याज दर पर दिया जाय।किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसान को चार वर्ष तक केवल ब्याज जमा करने की सुविधा और पांचवे वर्ष में एक बार मूलधन व् ब्याज दोनों जमा करने की सुविधा दी जाये। पिछले 15 वर्षों से किसान क्रेडिट कार्ड पर तीन लाख तक की सीमा पर 3% की छूट प्रदान की जाती है। इस सीमा को छह लाख किया जाय।कृषि ऋण की प्रक्रिया को सुगम,सस्ता बनाते हुए उचित वितरण पर फोकस किया जाय।जिससे सभी को आसानी से कृषि ऋण की उपलब्धता हो सके
4. कृषि ऋण का पुनर्गठन- आपातकालीन स्थितियों, जैसे बाढ़, सूखा, या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय में किसानों को ऋण पुनर्गठन (Restructuring) की सुविधा मिलनी चाहिए, ताकि वे अपने ऋण को चुकाने में आसानी से सक्षम हो सकें।
5.कृषि विस्तार प्रणाली में सुधार एवं बदलाव - देश का किसान वर्तमान में कृषि विभाग की नहीं बल्कि रासायनिक खाद,कीटनाशक बेचने वाली कंपनियों के एजेंट की सलाह पर खेती कर रहे है जिससे किसान को कम कमानियों को अधिक लाभ हो रहा है। इसका कारण है कि विभाग द्वारा तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण ,सुधार, डिजिटल कृषि विस्तार, स्थानीय जान और विशेषता,कृषि उत्पादन और विपणन में सुधार ,नवीनतम तकनीकी का हस्तांतरण,संपर्क एवं समन्वय में सुधार,प्राकृतिक आपदाओं के समय किसान का समर्थन आदि जैसे कार्यक्रम न चलाए जाने के कारण किसानों का खर्च बढ़ने के कारण आय कम हो रही है।
कृषि विस्तार आज भी हरित क्रांति की गेहूं,चावल जैसी फसलों पर केंद्रित है।कृषि विस्तार का फंड बनाकर सक्रिय किया जाय।
6. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में छोटे किसानों के लिए बीमा प्रीमियम शून्य होनी चाहिए, ताकि वे बीमा योजना का लाभ लें सके। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हर फसल में किसान को इकाई माना जाए ।किसानों के वास्तविक नुकसान एवं उचित भरपाई हेतु किसान को शामिल करते हुए एक तंत्र विकसित किया जाय।इसमें सुधार करते हुए ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, और अन्य उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि नुकसान का सटीक मूल्यांकन किया जा सके और जल्दी मुआवजा प्रदान किया जा सके। इससे दावों का निपटान तेज और सटीक होगा।कंपनियों की जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए किसानों को कंपनियों के चयन की सुविधा दी जाय।
7. सिंचाई और जल प्रबंधन- भारतीय कृषि आज भी बारिश एवं जलवायु पर निर्भर है। बूंद - बूंद से सिंचाई का तरीका बहुत महंगा एवं हर जगह कारगर नहीं है।देश में नहरों पर आधारित बड़ी परियोजनाओं के बनाए जाने एवं जल प्रबंधन की आवश्यकता है। बारिश के समय बाढ़ के कारण किसानों को प्रभावित करने वाला जल बह जाता है। इसके संरक्षण हेतु परियोजनाओं के क्रियान्वयन की जरूरत है
8.कृषि विपणन और इंफ्रास्ट्रक्चर- कृषि क्षेत्र के बाजार के रूप में लगभग 7000 हजार मंडिया है। देशभर में अगर पांच किलोमीटर पर एक मंडी का निर्माण किया जाए तो।देश में लगभग 42,000 मंडियों की जरूरत है।देश के अनेक राज्यों में मंडी नहीं है जहां मंडिया मजबूत है वहां भी उपज को सुखाने, छटाई, ग्रेडिंग,पैकेजिंग की सुविधा नहीं है।उपज की टेस्टिंग का कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है। देश में मंडी को आधुनिक सुविधायुक्त बनाया जाय ।खाद्य पदार्थों के नुकसान को कम करने हेतु कोल्ड चैन,भण्डारण की क्षमता को मजबूत किया जाय जिससे किसान को संरक्षित किया जा सके।
9. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग की स्थापना-ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के लिए कृषि आधारित उद्योग व लघु उद्योग की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों की जाय।इन उत्पादों को उनकी बिक्री सहित संरक्षण दिया जाये।
10. सामाजिक सुरक्षा -किसानों को सामाजिक सुरक्षा जैसे पेंशन, स्वास्थ बीमा, दुर्घटना बीमा जैसी सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में शामिल किया जाय।
11. निर्यातक फसलों के लिए कृषि बोर्ड का गठन - देश में मुख्य निर्यातक फसलों के निर्यात के लिए भारतीय तंबाकू बोर्ड व कॉफ़ी बोर्ड की तरह अन्य फसलों के बोर्ड बनाने की आवश्यकता है, क्योकि मुख्य निर्यातक फसलों के निर्यात के किये बोर्ड निर्यातक फसलों के क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास,वित्त व निर्यात सहित विपणन आदि के लिए कार्य करेगा।
12. कृषि उपकरणों एवं खेती में प्रयुक्त होने वाले समान पर जीएसटी समाप्त करना - कृषि उपकरणों,खाद, कीटनाशक दवाई, खरपतवार नाशक आदि को जीएसटी से बाहर किया जाय।आज भी अधिकतर समानों एवं उपकरणों में जीएसटी 18% देना पड़ता है।जब राज्यों में बिक्री कर की व्यवस्था थी, उस समय भी किसान इस तरह के टेक्स से बाहर था।
13. जलवायु परिवर्तन कृषि के अस्तित्व के लिए खतरा है। हीट बेव, तेज बारिश,असमय बारिश, बादल फटना आदि घटनाएं हो रही है। इसके लिए कीटों से निपटने,बीज आदि के लिए योजना बनाई जाए।
14.भारतीय किसान सभी कृषि उपकरणों और किसानों द्वारा दैनिक उपयोग की जाने वाली कृषि सामग्रियों पर एमआरपी चाहते हैं। कृषि उपकरण विक्रेताओं को कृषि मशीनरी पर एमआरपी दिखाई जानी चाहिए। कृषि यंत्रो के डीलरों कों अपनी अपनी कंपनियों की वैबसाइट मे कृषि यंत्रो का मूल्य प्रकाशित करना चाहिए l भारत सरकार द्वारा 2020 और 2023 कों ट्रैक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष कों आदेश जारी किया जा चुका हैँ परंतु इस नीति कों अभी भी लागू नहीं किया जा रहा हैँ l इससे किसानों के साथ धोखा हो रहा है
15. कृषि निर्यात एवं मुक्त व्यापार समझौते - न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम मूल्य पर किसी भी दशा में कृषि उत्पादों का आयात नहीं होना चाहिए। तथा न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) आपात स्थिति में ही लगायी जाए।
भारत सरकार को इंडिया यूरोपियन यूनियन FTA समझौते में कृषि का मुद्दा नहीं रखना चाहिए ।FTA समझौते में UPOV और बीज के एकाधिकार समझौते का पार्ट नहीं होना चाहिए
मुक्त व्यापार समझौते से डेरी का मुद्दा बिल्कुल बहार किया जाय।
भवदीय
धर्मेन्द्र मलिक
राष्ट्रीय प्रवक्ता
भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक
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